देवासी समाज का इतिहास ( History Of Dewasi Samaj )dewasi samaj




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Note:

रबारी देवासी समाज का इतिहास हमने

इसे ग्रन्थों से लिया हुआ है हमारा उद्देश्य किसी

भी धर्म या जाति को ठेस पहुंचाना नहीं है





नमस्कार दोस्तों आज हम बात करेंगे देवासी समाज के इतिहास के बारे में





देवासी समाज का इतिहास

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रबारी भारत की प्रमुख जाति है भारत मेँ इस जाति को मुख्य रूप से रेबारी, राईका, देवासी, देसाई, धनगर, पाल, हीरावंशी या गोपालक के नाम से पहचाना जाता है।

यह जाति राजपूत जाति से निकल कर आई है ऐसा कई विद्वावानो का मानना है।

यह जाति भली-भोली और श्रद्धालु होने से देवो का वास इसमे रहता है या देवताओं के साथ रहने से इसे देवासी के नाम से भी जाना जाता है भारत मेँ रेबारी जाति मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उतरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, आदि राज्योँ मेँ पायी जाती है।

विशेष करके उत्तर, पश्विम और मध्य भारत में।

वैसे तो पाकिस्तान में भी अंदाजित 40000 रेबारी है।

रेबारी जाति का इतिहास बहुत पूराना है लेकीन शुरू से ही पशुपालन का मुख्य व्यवसाय और घुमंतू (भ्रमणीय) जीवन होने से कोई आधारभुत ऐतिहासिक ग्रंथ लीखा नही गया और अभी जो भी इतिहास मील रहा है वो दंतकथाओ पर आधारीत है।




प्रत्येक जाति की उत्पति के बारे मेँ अलग-अलग राय होती है उसी प्रकार रेबारी जाति के बारे मेँ भी एक पौराणीक दंतकथा प्रचलित है-कहा जाता है कि माता प्रार्वती एक दिन नदी के किनारे गीली मिट्टी से ऊँट जेसी आक्रति बना रही थी तभी वहा भोलेनाथ भी आ गये।

माँ प्रार्वती ने भगवान शिव से कहा- हे ! महाराज क्योँ न इस मिट्टी की मुर्ति को संजीवीत कर दो।

भोलेनाथ ने उस मिट्टी की मुर्ति (ऊँट) को संजीवन कर दिया माँ प्रार्वती ऊँट को जिवीत देखकर अतिप्रसन्न हुयी और भगवान शिव से कहा-हे ! महाराज जिस प्रकार आप ने मिट्टी के ऊँट को जीवीत प्राणी के रूप मेँ बदला है ,उसी प्रकार आप ऊँट की रखवाली करने के लिए एक मनुष्य को भी बनाकर दिखलाओँ।

आपको पता है। उसी समय भगवान शिव ने अपनी नजर दोडायी सामने एक समला का पेड़ था समला के पेड़ के छिलके से भगवान शिव ने एक मनुष्य को बनाया।

समला के पेड से बना मनुष्य सामंड गौत्र का रेबारी था आज भी सामंड गौत्र रेबारी जाति मेँ अग्रणीय है। रेबारी भगवान शिव का परम भगत था।






शिवजी ने रेबारी को ऊँटो के टोलो के साथ भूलोक के लिए विदा किया। उनकी चार बेटी हुई, शिवजी ने उनके ब्याह राजपूत (क्षत्रीय) जाति के पुरुषो के साथ कीये। और उनकी संतती हुई वो हिमालय के नियम के बहार हुई थी इस लिये वो “राहबरी” या “रेबारी” के नाम से जानी जाने लगी!

 भाट,चारण और वहीवंचाओ के ग्रंथो के आधार पर, मूल पुरुष को 16 लडकीयां हुई और वो 16 लडकीयां का ब्याह 16 क्षत्रीय कुल के पुरुषो साथ कीया गया! जो हिमालयके नियम बहार थे, सोलाह की जो वंसज हुए वो राहबारी और बाद मे राहबारी का अपभ्रंश होने से रेबारी के नाम से पहचानने लगे,

बाद मे सोलाह की जो संतति जिनकी शाख(गौत्र) राठोड,परमार,सोँलकी, मकवाणा आदी रखी गयी ज्यो-ज्यो वंश आगे बढा रेबारी जाति अनेक शाखाओँ (गोत्र) मेँ बंट गयी। वर्तमान मेँ 133 गोत्र या शाखा उभर के सामने आयी है जिसे विसोतर के नाम से भी जाना जाता है । 



विसोतर का अर्थ- (बीस + सौ + तेरह) मतलब विसोतर यानी 133 गौत्र ॥ प्रथम यह जाति रेबारी से पहचानी गई, लेकीन वो राजपुत्र या राजपूत होने से रायपुत्र के नाम से और रायपुत्र का अपभ्रंश होने से 'रायका' के नाम से , गायो का पालन करने से 'गोपालक' के नाम से, महाभारत के समय मे पांडवो का महत्वपूर्ण काम करने से 'देसाई' के नाम से भी यह जाति पहचानी जाने लगी! 




एक मान्यता के अनुसार, मक्का-मदीना के इलाको मे मोहम्मद पयंगबर साहब से पहले जो अराजकता फैली थी, जिनके कारणे मूर्ति पूजा का विरोध होने लगा! 

उसके परिणाम से यह जाति ने अपना धर्म बचाना मुश्किल होने लगा तब अपने देवी-देवताओ को पालखी मे लेके हिमालय के रास्ते से भारत मे प्रवेश कीया होगा. (अभी भी कई रेबारी अपने देवी-देवताको मूर्तिरूप प्रस्थापित नही करते, पालखी मे ही रखते है!) उसमे हूण और शक का टौला सामिल था! 

रेबारी जाति मे आज भी हूण अटक (Surname) है! इससे यह अनुमान लगाया जाता है की हुण इस रेबारी जाति मे मील गये होंगे! एक ऐसा मत भी है की भगवान परशुराम ने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रीय-विहीन किया था, तब 133 क्षत्रीयो ने परशुराम के डर से क्षत्रिय धर्म छोडकर पशुपालन का काम स्वीकार लिया!

 इस लिये वो 'विहोतर' के नाम से जाने जाने लगे! विहोतेर मतलब ( बीस + सौ + तैरह )मतलब 133 पौराणिक बातो मे जो भी हो, किंतु इस जाति का मूल वतन एशिया मायनोर होगा की जहा से आर्यो भारत भूमि मे आये थे! 





आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था ओर रेबारी का मुख्य व्यवसाय आज भी पशुपालन हि है! इसीलीए यह अनुमान लगाया जाता है की आर्यो के साथ यह जाती भारत में आयी होंगी! 

      जब भारत पर मुहम्मद गजनवी ने आक्रमण किया था तब उसका वीरता पूर्वक सामना करने वाले महाराजा हमीर देव का संदेश भारत के तमाम राजाओं को पहुँचाने वाला सांढणी सवार रेबारी ही तो था।


      जूनागढ के इतिहासकार डॉ  शंभुप्रसाद देसाई ने नोंधट की है कि वे रावल का एक बलवान रेबारी हमीर मुस्लिमो के 
शासक के सामने खुशरो खां नाम धारण करके सूबा बना था जो बाद मे दिल्ली की गद्दी पर बैठ कर  सुलतान बना था। सन 1901 मे लिखा गया बोम्बे गेझेटियर मे लिखा है की रेबारीओं की शारीरिक मजबूती देख के लगता है की शायद वो पर्शियन वंश के भी हो सकते है और वो पर्शिया से भारत मे आये होंगे रेबारीओं मे एक आग नाम की शाख है और पर्शियन आग अग्नि के पूजक होते हैं।


Note: दोस्तों आपको ये पोस्ट केसी लगी ये आप हमे कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। इस पोस्ट में हमने बहुत ही सावधानी बरती हैं फिर भी कोई गलती हो गयी है तो क्षमा करे।



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